क्या आप म्यूच्यूअल फण्ड में इन्वेस्ट करना चाहतें है लेकिन ज्यादा रिस्क लेने से डरते है ? अगर हाँ तो आप बिल्कुल सही पोस्ट पढ़ रहे है | आज के इस पोस्ट में आप डेट फण्ड के बारे में सीखने वाले है | तो चलिए जानतें है Debt Mutual funds क्या होता है |
Debt Mutual Funds क्या है ?
डेट फण्ड, म्यूच्यूअल फण्ड का एक विकल्प है | यह उन निवेशकों के लिए बेहतर है जो कम रिस्क लेकर अपनें पैसे को निवेश करना चाहते है | डेट फण्ड में निवेशकों के लगायें पैसे को सरकारी प्रतिभूतियों, कॉर्पोरेट बांड, ट्रेज़री बिल, व अन्य प्रकार के सिक्योरिटीज़ में लगाया जाता है अर्थात् उधार के रूप में संस्थाओ को दिया जाता है|
डेट फण्ड में इक्विटी फण्ड के तुलना में रिस्क कम होता है | इक्विटी फण्ड में पैसा कंपनियों के शेयर में लगाया जाता है इसलिए इक्विटी फण्ड में रिस्क ज्यादा होता है |
डेब्ट फण्ड में लगाया गया पैसा एक निश्चित समय के लिए, निश्चित ब्याज़ दर पर लगाया जाता है | अतः निवेशकों को इस बात का खबर रहता है कि समयावधि समाप्त होने पर उन्हें एक "फिक्स इनकम" मिलने वाला है | डेट फण्ड को फिक्स इनकम मिलने के वजह से ही फिक्स इनकम सिक्यूरिटी कहा जाता है |
डेट फण्ड में लगाया पैसा कम या ज्यादा समय के लिए अलग-अलग क्रेडिट रेटिंग्स की सिक्योरिटीज़ में भी लगाया जाता है ताकि निवेशकों को बेहतर रिटर्न दिलाया जा सकें, परंतु कई बार क्रेडिट रेटिंग्स के आधार पर इन सिक्योरिटीज़ में रिस्क भी होते है | जहां ज्यादा क्रेडिट रेटिंग वालें संस्थाओ अपना उधारी व ब्याज़ चुकाने में बेहतर मानी जाती है |
आप डेट फण्ड में कम समय (3 या 6 माह ) या लम्बे समय के (3 या 5 साल से अधिक ) के लिए इन्वेस्ट कर सकते है | समय ( मैच्योरिटी) के आधार पर डेट फण्ड भी अलग-अलग हो सकते है |
डेट फण्ड में 3 साल या उससे ज्यादा होने के बाद 20% का लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगाया जाता है जबकि शोर्ट-टर्म में निवेशक को डेट फण्ड से मिलने वाले कैपिटल गेन को टोटल इनकम में जोड़कर सरकार द्वारा निर्धारित टैक्स स्लैब के आधार पर टैक्स देना होता है |
Debt Mutual Funds कैसे करता है ?
इक्विटी म्यूच्यूअल फण्ड कंपनियों के शेयर पर निर्भर होता है उसी प्रकार डेट म्यूच्यूअल फण्ड पूरी तरह से ब्याज़ दर पर निर्भर करता है |
ब्याज़ दर (रेपो रेट व रिवर्स रेपो ), जिसे रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) नियंत्रित करती है अर्थात RBI ही ब्याजदर को अर्थव्यवस्था के परिस्थितियों के आधार पर कम या ज्यादा करती है |
और इस ब्याजदर के उतार-चढाव के आधार पर ही कॉर्पोरेट बांड या डेट सिक्योरिटीज जारी करती है | इसका मतलब है कि डेट फण्ड का रिटर्न ब्याजदर पर निर्भर होता है |
अगर ब्याजदर कम होता है तो बांड की कीमत बढ़ जाती है और निवेशकों को अच्छा रिटर्न मिलता है जबकि ब्याजदर ज्यादा होता है तो बांड की कीमत घट जाती है | इसका मतलब डेट इंस्ट्रूमेंट का की कीमत ब्याजदर के विपरीत होता है |
Debt Mutual Fund के प्रकार
जिस तरह इक्विटी फण्ड, मार्केट कैप व इन्वेस्टिंग स्टाइल के आधार कई प्रकार के होते है उसी प्रकार डेट फण्ड मैच्योरिटी के समय के आधार पर कई प्रकार के होते है |
लिक्विड फण्ड - इस फण्ड का पैसा ऐसे डेट इंस्ट्रूमेंट में लगाया जाता है जिन की मैच्योरिटी 91 दिन से ज्यादा नही होती है | यह फण्ड बचत बैंक की तुलना में अच्छा विकल्प होता है क्योकिं इसमें बेहतर रिटर्न मिलता है और कम समय के लिए होता है |
लिक्विड फण्ड का पैसा कम समय में मैच्योर होने वाले डेट इंस्ट्रूमेंट में लगया जाता है इसलिए इसमें रिस्क कम होता है व रिटर्न के नेगेटिव होने का चान्स बहुत ही कम होता है |
डायनामिक फण्ड - डायनामिक फण्ड में, निवेश में मिलने वाला ब्याज़ दर बदलता रहता है इसलिए निवेश के मैच्योर होने का समय भी बदलता रहता है अर्थात ब्याज दर से सीधा सम्बन्ध होने के कारण पैसे का निवेश भी जल्दी या देर से किया जाता है |
शोर्ट टर्म या अल्ट्रा शोर्ट टर्म डेट फण्ड - ये डेट फंड्स ऐसे इन्वेस्टर के लिए बहुत ही उपयुक्त है जो 3 साल के लिए निवेश करना चाहते है क्योकिं यह फण्ड 3 साल में मैच्योर हो जाते है | इसके साथ ही ब्याज़ दर में बदलाव का भी इन फंड्स में ज्यादा प्रभाव नही होता है |
इनकम फण्ड - इनकम फण्ड में मैच्योरिटी का समय कम से कम 5 औसतन होता है इसलिए इस फण्ड का पैसा ब्याज़ दर के आधार पर अलग-अलग सिक्योरिटीज़ में लगाया जाता है ताकि निवेशकों को बेहतर रिटर्न दिलाया जा सकें |
गिल्ट फण्ड - इस फण्ड का पैसा केवल सरकारी सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट किया जाता है | गिल्ट फण्ड उन निवेशकों के लिए बेहतर माना जाता है जो कम रिस्क के साथ एक अच्छे विकल्प की तलाश में है | गिल्ट फण्ड में क्रेडिट रिस्क कम होता है क्योकिं गिल्ट फण्ड का पैसा सरकारी सिक्योरिटीज में लगाया जाता है |